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जघन्य अपराधों के खुलासे में फोरेंसिक एक्सपर्ट्स का रोल अहम

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जघन्य अपराधों के खुलासे में फोरेंसिक एक्सपर्ट्स का रोल अहम

डॉ. भीम राव अंबेडकर यूपी पुलिस अकादमी में वरिष्ठ पुलिस और अभियोजन अधिकारियों के लिए जांच के प्रशिक्षण कार्यक्रम में तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के फोरेंसिक विभाग की वरिष्ठ फैकल्टी श्री योगेश कुमार ने बताईं तमाम फोरेंसिक बारीकियां

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के कॉलेज ऑफ पैरामेडिकल साइंसेज में फोरेंसिक साइंस विभाग की सीनियर फैकल्टी एवम् फोरेंसिक एक्सपर्ट्स श्री योगेश कुमार ने कहा, पुलिस, फोरेंसिक विशेषज्ञों और अभियोजन अधिकारियों के बीच अटूट संबंध आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रभावी संचालन के लिए आवश्यक है, क्योंकि अपराधों की जाँच और निर्णय में ये सभी एक-दूसरे के पूरक और परस्पर निर्भर भूमिका निभाते हैं। पुलिस प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता के रूप में कार्य करती है, जो अपराध स्थलों की सुरक्षा, साक्ष्य संग्रह और जाँच शुरू करने के लिए ज़िम्मेदार होती है। आधुनिक अपराध की जटिलता अक्सर पारंपरिक पुलिसिंग के दायरे से परे वैज्ञानिक विश्लेषण की माँग करती है। यही वह जगह है, जहाँ फोरेंसिक विशेषज्ञ आते हैं। फोरेंसिक वैज्ञानिक साक्ष्यों- जैसे उंगलियों के निशान, डीएनए, विष विज्ञान, प्राक्षेपिकी और डिजिटल ट्रेस-की वस्तुनिष्ठ वैज्ञानिक जाँच करते हैं। श्री कुमार डॉ. भीम राव अंबेडकर यूपी पुलिस अकादमी, मुरादाबाद में वरिष्ठ पुलिस और अभियोजन अधिकारियों के लिए जांच में फोरेंसिक विज्ञान की भूमिका और एक्सपर्ट्स इंवेस्टिगेशन के लिए परीक्षण और रणनीति पर आयोजित सत्र में बोल रहे थे। उल्लेखनीय है, यह सत्र पुलिस अनुसंधान एवम् विकास ब्यूरो- बीपीआरएंडडी, गृह मंत्रालय- एमएचए की ओर से प्रायोजित एवम् ईवाई इंडिया- तेजोमा टेक्नोलॉजीज के सहयोग से आपराधिक न्याय प्रणाली को मजबूत करने के लिए नए आपराधिक कानूनों पर टीओटी कार्यक्रम के तहत आयोजित 5-दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान आयोजित किया गया था। सत्र के दौरान 70 से अधिक प्रतिभागियों ने मॉक केस जांच का अभ्यास भी किया।

टीएमयू के वरिष्ठ फैकल्टी श्री योगेश ने बताया, फोरेंसिक विशेषज्ञता जाँच प्रक्रिया को विश्वसनीयता और सटीकता प्रदान करके कच्चे साक्ष्यों को कानूनी रूप से स्वीकार्य तथ्यों में बदल देती है। इससे अभियोजन पक्ष, अदालत में एक सुसंगत और ठोस मामला बनाने के लिए पुलिस जाँच और फोरेंसिक निष्कर्षों को प्रस्तुत करता है। अभियोजक कस्टडी की श्रृंखला स्थापित करने, साक्ष्य की अखंडता बनाए रखने और उचित प्रक्रिया को बनाए रखने के लिए सटीक फोरेंसिक व्याख्याओं और सुप्रलेखित पुलिस प्रक्रियाओं पर भरोसा करते हैं। इन संस्थाओं के बीच किसी भी तरह की गड़बड़ी या गलत संचार से साक्ष्य की स्वीकार्यता प्रभावित हो सकती है या न्याय की विफलता भी हो सकती है, इसीलिए अपराध का पता लगाने, संदिग्धों पर मुकदमा चलाने और न्याय प्रदान करने के लिए एक संपूर्ण, वैध और वैज्ञानिक दृष्टिकोण सुनिश्चित करने हेतु पुलिस, फोरेंसिक विशेषज्ञों और अभियोजकों के बीच घनिष्ठ, समन्वित और पारदर्शी संबंध आवश्यक है। सत्र के दौरान श्री योगेश कुमार ने आपराधिक न्याय प्रणाली में फोरेंसिक विज्ञान की भूमिका, अपराध स्थल पर मिले साक्ष्यों की पहचान, संग्रह, संरक्षण और पैकिंग पर चर्चा की। उन्होंने विभिन्न आपराधिक केसों पर चर्चा करते हुए बताया, पुलिस और फोरेंसिक विशेषज्ञों की सतर्कता केस को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। सत्र के बाद एक नकली अपराध स्थल तैयार किया गया और साक्ष्यों के संग्रह पर व्यावहारिक अभ्यास के साथ-साथ अच्छे साक्ष्य संग्रह, संरक्षण और जाँच के लिए आवश्यक सावधानियों पर चर्चा की गई। उल्लेखनीय है, श्री योगेश कुमार अंडमान और निकोबार द्वीप समूह स्थित फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला के प्रभारी रहे हैं। वर्तमान में तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। वह अपने 18 बरस के फोरेंसिक करियर में दिल्ली फोरेंसिक लैब, इंडिया की एक मात्र डोपिंग लैब एवम् फोरेंसिक लैब अंडमान में कार्यरत रहते हुए रिसर्च, कॉन्फ्रेंसेज एवम् अलग-अलग संस्थानों लेक्चर डिलीवरी जैसी अन्य वैज्ञानिक गतिविधियों में हिस्सा लेते आए हैं।

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