
रुद्रपुर : कुमाऊनी भाषा की घटती लोकप्रियता पर चिंता जताते हुए कुमाऊं क्षेत्र के बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों और सांस्कृतिक कर्मियों ने रुद्रपुर में “कुमाऊनी भाषा सम्मेलन” का आयोजन किया। सम्मेलन का शुभारंभ पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व सांसद व पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने किया।
वक्ताओं ने कुमाऊं और तराई के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि रुद्रपुर, बाजपुर और काशीपुर को चंद राजाओं ने बसाया था, जो कुमाऊं की सांस्कृतिक जड़ों का प्रमाण है।
सम्मेलन में ब्रिगेडियर धीरज कुमार जोशी की पुस्तक कथांजलि, प्रकाश चंद्र तिवारी की कविता की कहानी, मोहन चंद्र पंत की कुमाऊनी लोककथाएं सहित कई पुस्तकों का विमोचन किया गया।
के. सी. चंदोला की अध्यक्षता में आयोजित प्रथम सत्र में भगत सिंह कोश्यारी ने कहा— “भाषा किसी समाज की आत्मा होती है, कुमाऊनी हमारी पहचान है, इसे बचाना हम सबका दायित्व है।”
संरक्षक हयात सिंह रावत ने बताया कि पिछले 16 वर्षों से लगातार प्रयास जारी हैं ताकि कुमाऊनी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराया जा सके। उन्होंने कहा कि “जब कश्मीर की कश्मीरी और डोगरी भाषाएं अनुसूची में शामिल हो सकती हैं, तो उत्तराखंड की कुमाऊनी और गढ़वाली क्यों नहीं।”
इस अवसर पर पूर्व निदेशक उच्च शिक्षा बहादुर सिंह बिष्ट, डा. अजंता बिष्ट (प्रधानाचार्य, डायट रुद्रपुर), आनंद सिंह धामी, डा. के. सी. चंदोला, ब्रिगेडियर धीरेश कुमार जोशी, भरत लाल शाह, जनार्दन चिलकोटी, डा. बी. एस. बिष्ट, डा. ललित मोहन उप्रेती, बीना तिवारी, दयाल चंद्र पांडे, हेम पंत, दिवाकर पांडे, योगेश वर्मा, चारु तिवारी, मनोज चंदोला, मीरा जोशी, हेमा हर्बोला, दिनेश पंत, डा. बी. एस. कालाकोटी सहित 200 से अधिक विद्वान, लेखक व संस्कृति कर्मी मौजूद रहे।



